बीतें ना ये दिन
है खाली ये रातेंगुमराह खड़ी मैं यहाँ
कोई उमंग न दिखे
कोई आस न दिखे
टूटे हो जैसे सपने मेरे
समेटने को भी अब मन ना रुके ।
क्यू हुआ ये सब
बस पुछु मैं खुदसे अब
जवाब ना मिलेगा जानती हुँ
फिर भी आस लगाए बैठी हुँ ।
कभी तो मन्नत पूरी होगी
कभी तो खुशिया हासिल होगी
सिर्फ आँसू तो दे नहीं सकता भगवान
इतना विश्वास बनाए बैठी हुँ ।
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