Sunday, July 17, 2011

उलझन...


उड़ना चाहती हु मै...
इस खुले आकाश में... पंख लगा कर...
भूल जाना चाहती हु अपने सारे गम सारी परेशानिया...
जीना  चाहती हु अपना बचपन जो शायद ठीक से नहीं जिया है मैंने...
करना चाहती हु वो सब जो शायद कर नहीं पा रही हु मै...
सवाल यही है... क्यूँ नहीं जी पाई मै मेरा बचपन?
क्यूँ नहीं कर पा रही हु मै वो सब, जो मैंने हमेशा करना चाहा है?
क्या रोक रहा है मुझे?
क्यूँ रोक रही हु मै खुदको?
सवाल आसान है शायद... पर जवाब... शायद कठिन और शायद नामुमकिन है समझना...
उलझी हुई है मेरी ज़िन्दगी या शायद मै खुद उसे उलझा रही हु... पता नहीं... क्यूँ???

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